आज हम जानेगे की रामायण व महाभारत में क्या -क्या समानताएँ और विषमताएँ Similarities and inequities in Ramayana and Mahabharata ।
वैसे तो रामायण व महाभारत दोनों ही भारतीयों के धर्मग्रंथ हैं। रामायण आदि काव्य है व महाभारत एक इतिहास। इन दोनों ग्रंथों का अध्ययन करने पर कुछ समानताएं एवं विषमताएँ दिखाई देती है।
रामायण व महाभारत की समानताएँ Similarities of Ramayana and Mahabharata
रामायण व महाभारत दोनों ही भारतीयों के जीवन , नैतिक विचारों और धार्मिक मान्यताओं को प्रभावित करते हैं।अंतर यह है कि रामायण प्रधानरूप से अलंकृत काव्य है और महाभारत एक इतिहास ग्रंथ। दोनों का प्रारंभ राज्यसभा के दृश्य से होता है। सीतास्वयंवर एवं द्रौपदी स्वयंवर में राम व अर्जन द्वारा धनुर्विद्या का प्रदर्शन करने में, रावण द्वारा सीताहरण व द्रौपदी का जयद्रथ द्वारा हरण होने में, राम तथा पाण्डवों के वनवास में सीता व द्रौपदी के कारण महायुद्ध होने में, देवताओं द्वारा प्रदत्त दिव्यास्त्र प्राप्त करने में राम को सुग्रीव से तथा पाण्डवों की मत्स्यनरेश विराट से मित्रता होने में साम्य है।
रामायण में लक्ष्मण मरणासन्न रावण से तथा महाभारत में युधिष्ठिर शरशय्या पर लेटे हुए भीष्म से नीति विषयक उपदेश प्राप्त करते हैं । राम व युधिष्ठिर दोनों का ही युद्ध के उपरांत राज्याभिषेक होता है। दोनों ही अश्वमेध। यज्ञ भी करते हैं।
दोनों ग्रंथों में सीता और द्रौपदी नामक नायिकाओं का जन्म भी अलौकिक प्रकार से हुआ है , सीता का पृथ्वी से और द्रौपदी का अग्निकुण्ड से । दोनों ही ग्रंथ दुःखान्त हैं । दोनों में ही सत्य की असत्य पर विजय दिखाई गई है । कुछ समय तक चाहे असत्य का उत्कर्ष दिखाई पड़े परंतु अन्ततोगत्वा सत्य की ही विजय होती है । दोनों ही काव्य अपने - अपने रचयिताओं के शिष्यों । द्वारा यज्ञ के शुभ अवसर पर सुनाए गए हैं ।
भाषा और शैली की दृष्टि से भी दोनों में साम्य है । दोनों ग्रंथों में अनुष्टुप् छंद का ही प्रयोग किया गया है । कुछ उपमाओं , लोकोक्तियों व श्लोकों के अर्थ भी एक समान हैं । डॉ . हॉपकिन्स ने लगभग 300 ऐसे संदर्भ छोटे हैं , जिनमें दोनों काव्यों में शब्दावली एक जैसी है , उदाहरणार्थ ' नोत्कंठा कर्तुमर्हसि दोनों काव्यों में पाया जाता है ।
दोनों काव्यों में चिरकाल तक आदान - प्रदान होता रहा है और समय के साथ - साथ इन दोनों काव्यों में परिवर्धन एवं परिशोधन होता रहा है । वेदों की भांति प्राकृतिक शक्तियों की उपासना समाप्त हो गई थी । वरुण अश्विन् , आदित्य उषस आदि वैदिक देवताओं का अस्तित्व समाप्त हो गया था । ब्रह्मा ,विष्णु , शिव , दुर्गा गणेश आदि की उपासना की जाती थी । मंदिरों का निर्माण किया जाता था ।
रामायण व महाभारत की विषमताएँ Opposites of Ramayana and Mahabharata
रामायण महाभारत से पहले की रचना है । कारण यह है कि रामायण महाभारत के पात्रों से अनभिज्ञ थे लेकिन महाभारत के रामोपाख्यान में रामकथा का वर्णन है । रामायण महाभारत की अपेक्षा बहुत ही लघु है।
रामायण की कथा सुश्लिष्ट एवं सुसंबद्ध है । किंतु महाभारत की कथा इतनी सुश्लिष्ट एवं सुसंबद्ध नहीं है । ऐसा प्रतीत होता है कि महाभारत में विभिन्न वण्र्यविषय एक साथ रख दिए गए हों । रामायण एक ही कवि की रचना है , जबकि महाभारत पर अनेक कवियों की छाप है । व्यास , वैशम्पायन व सौति उग्रश्रवा यह तीन तो मुख्य रूप से वक्ता हैं ही । इसीलिए रामायण की शैली में एकरूपता है और महाभारत की शैली में भिन्नता । रामायण की भाषा कलात्मक , परिष्कृत , अलंकृत है , जबकि महाभारत की भाषा प्रभावशाली एवं ओजयुक्त है ।
रामायण में एक ही नायक है और वह है राम , लेकिन महाभारत में मुख्य पात्रों के बीच में किसी एक का नायक के रूप में चयन करना कठिन है । रामायण में धर्म की प्रधानता है जबकि महाभारत में शौर्य और कर्म प्रधान हैं । रामायण में राम का रावण के साथ युद्ध करना एक नियति थी जबकि महाभारत में कौरवों व पाण्डवों का युद्ध पारस्परिक द्वेष और ईष्र्या के कारण ही हुआ । रामायण में सदाचार और नैतिकता का प्राधान्य है । जबकि महाभारत में राजनीति और कूटनीति का प्रधान है । रामायण में वर्ण व्यवस्था कठोर थी जबकि महाभारत के समय तक इसमें शिथिलता आ गई थी । अग्नि परीक्षा का चलन महाभारत में नहीं था ।
युद्ध कला रामायण के समय में इतनी विकसित नहीं थी , जितनी महाभारत के समय में हो चुकी थी। क्रौञ्चव्यूह , पद्मव्यूह , चक्रव्यूह , मकरव्यूह आदि सैन्यसंरचनाओं से रामायण परिचित नहीं थी । भौगोलिक दृष्टि से भी रामायण और महाभारत में पर्याप्त अंतर है । रामायण में दक्षिण भारत को एक विशाल अरण्यानी की तरह चित्रित किया गया है , जहां वानर , भालू और रीछ जैसे हिंसक पशु तथा विराध व कबंध जैसे राक्षस रहते थे ।
रामायण में आर्यसभ्यता अपने विशुद्ध रूप में मिलती है , जबकि महाभारत के समय में म्लेच्छों का आगमन प्रारंभ हो गया था । लाक्षागृह बनाने वाला पुरोचन म्लेच्छ था । धार्मिक विश्वास और नैतिक नियमों में भी दोनों ग्रंथों में पर्याप्त अंतर है । रामायण में जब हनुमान सीता को अपनी पीठ पर बिठाकर उसे राम के पास ले जाने का प्रस्ताव रखते हैं , तो सीता परपुरुष - स्पर्श के भय से उसे अस्वीकार कर देती है । सीता को अपनी चारित्रिक शुद्धि प्रमाणित करने के लिए अग्नि - परीक्षा देनी पड़ती है । किंतु महाभारत में जयद्रथ द्वारा द्रौपदी के अपहरण के पश्चात् उसे कोई अग्नि परीक्षा नहीं देनी पड़ती । द्रौपदी पांच पतियों वाली है ।
धृतराष्ट्रर , पाण्डु और विदुर की उत्पत्ति नियोगविधि द्वारा हुई थी । दुर्योधन भरी सभा में द्रौपदी का अपमान करता है और गुरुजन उसे रोक नहीं पाते । दोनों ग्रंथों को नैतिकता और वैवाहिक विचारों में काफी मतभेद है ।
युद्ध के विषय में भी महाभारत के समय में नैतिक आदशों का ह्रास हो रहा था । रामायण में राम घायल रावण पर प्रहार नहीं करते , किंतु महाभारत में युद्ध के समस्त नियमों का उल्लंघन करते हुए सात महारथी , जिनमें स्वयं युद्ध की शिक्षा देने वाले द्रोण भी शामिल हैं , नि:शस्त्र अभिमन्यु पर एक साथ प्रहार करते हैं । इसी प्रकार द्रोण और कर्ण की हत्या कर दी जाती है । अश्वत्थामा सोते हुए पाँच पाण्डवों के पांचों पुत्रों की हत्या कर देता है ।
इस प्रकार रामायण की सभ्यता अपेक्षाकृत अधिक शिष्ट सुसंस्कृत एवं आदर्शपूर्ण है । उत्तरोत्तर हास होना स्वाभाविक भी है क्योंकि रामायण त्रेतायुग की सभ्यता को प्रस्तुत करती है तथा महाभारत द्वापर युग का । प्रतिनिधित्व करती है ।
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