संस्कृत भाषा की उत्पत्ति Origin of Sanskrit language संस्कृत साहित्य का इतिहास History of Sanskrit literature

आज हम जानेगे की संस्कृत भाषा की उत्पतिOrigin of Sanskrit language कैसे और कब हुई | और संस्कृत का विकास कैसे और कब हुआ | 





संस्कृत भारत के साहित्यिक ,सांस्कृतिक ,धार्मिक ,आध्यात्मिक ,नैतिक ,राजनैतिक और ऐतिहासिक जीवन की व्यवस्था भी इसी भाषा में मिलती है | यह ग्रीक ,लैटिन ,जर्मन ,गोथिक आदि अनेक भारोपीय परिवार की भाषाओ की जननी है | भारत के सभी प्रांतीय भाषाओं मे संस्कृत शब्द प्राप्त होते है | यहां तक की बङ्ग्ला और दक्षिणभारत की सभी प्रान्तीय भाषाओं में अधिकांश शब्द संस्कृत भाषा के ही है


 संस्कृत वेद  से पूर्व भी रही होगी लेकिन उसका कोई प्रमाण हमारे पास अभी तक नहीं है। इस भाषा को बोलने वाले आर्य थे । आर्य किसी जाति विशेष का नाम नहीं है । यह शब्द श्रेष्ठमानव के लिए प्रयुक्त होता है । ऋग्वेद की तिथि निर्धारण करना अत्यधिक मुष्किल कार्य है किंतु फिर भी विद्वानों के अनुसार ईसापूर्व 3500ई . में सम्भवतः ऋग्वेद की रचन हुई  होगा । संस्कृत के रूप में समय - समय परपरिवर्तन आए  । त्रग्वेद की भाषा वैदिक संस्कृत है । वह संस्कृत से भिन्न है । वैदिक साहित्य के बाद अर्थात् रामायण की भाषा को लौकिक संस्कृत कहा जाता है । संस्कृत शब्द का प्रयोग भाषा विशेष के अर्थ में सर्वप्रथम रामायण में दिखाई देता है । सुन्दर काण्ड में हनुमान यह विचार करते हैं कि सीताजी से किस भाषा में वार्तालाप किया जाए । यदि संस्कृत भाषा में बात करूंगा तो सीता मुझे रावण समझ कर डर जायेंगी ।


यदि वाचं प्रदास्यामि द्विजातिरिव संस्कृताम् |
रावणं मन्यमाना मां सीता भीता भविष्यति । ।
" सुन्दरकाण्ड "


 यास्क तथा पाणिनि के समय में बोलने वाली बोली केवल भाषा है - "भाषायामनवद्याञ्च "

( निरुक्त )


        जब भाषा का सर्वसाधारण में प्रचार कम होने लगा तब पालि प्राकृत अपभ्रंश आदि बोलचाल की भाषा बन गई । उस समय महाकवि दण्डी ने प्राकृत भाषा से भेद दिखलाने के समय संस्कृत का प्रयोग भाषा के लिए किया


 संस्कृतं नाम देवी वाक् अन्वाख्याता महर्षिभिः
 " काव्यादर्श "
:

प्राचीन व्याकरणों ने इसका नाम संस्कृत इसलिए रखा है क्योंकि सम्। पूर्वक धातु से निष्पन्न होकर क्त प्रत्यय लगने के पश्चात् यह भाषा संस्कृत | कहलाई क्योंकि यह शुद्ध संस्कारयुक्त भाषा है । पाणिनि आदि व्याकरण के नियमों के संस्कार से युक्त होने के कारण यह पवित्र भाषा संस्कृत भाषा । केहलाने लगी ।


संस्कृत भाषा का क्रमिक विकास हुआ । ऐतिहासिक अध्ययनों से विदित होता है कि भारत में आर्य भाषा ने दो रूपों में अपना विकास किया । उसका पहला रूप हमें तत्कालीन जन सामान्य की भाषा के रूप में और दूसरा । साहित्य की भाषा के रुप में मिलता है । बोलचाल की भाषाएँ प्रादेशिक भाषाएं थीं । प्रादेशिक भाषाओं के प्रबल पक्षपाती जैन और बौद्ध के लोकभाषा संबन्धी उद्योगों ने बहुत चाहा कि वे संस्कृत के प्रभाव को अपने अंदर सीमित कर लें , किंतु इसके विपरीत संस्कृत का निरंतर विकास होता गया । पाणिनि व्याकरण भी संस्कृत को बांध न सकी । उसका निरंतर विकास होता गया । ईसा की प्रथम शताब्दी के आस पास के संस्कृत नाटकों का अध्ययन करके हमें पता चलता है कि अभिजात वर्ग की भाषा संस्कृत थी और निम्न वर्ग के पात्र तथा स्त्रियां प्राकृत भाषा का प्रयोग करती थीं ।


     भारत के विभिन्न भागों में जैसे उत्तरी भारत में जहाँ एक ओर अनार्य संस्कारों का पूर्णतया आर्य करण होकर एक समुचित संस्कृति का जिसे हिंदू संस्कृति कहा जा सकता था , प्रतिष्ठित हो चुकी थी , वहां दूसरी ओर धर्म , दर्शन और कथाओं के निर्माण के लिए संस्कृत को ही एक मत से अपनाया।जाने लगा।यह क्रम ईसा पूर्व की पहली सहस्राब्दी तक चलता रहा । आर्यभाषा की विशेषता यह थी कि उसने अपने आँचल के नीचे भारत के जन साधारण को समेट लिया था । 


दक्षिण - भारत में आर्यभाषा के दोनों रुप संस्कृत और प्राकृत अभी तक पूर्ण स्थान नहीं बना सके थे । किंतु धीरे - धीरे सुसभ्य द्रविड़ों ने उसको अपना बना लिया जिसके फलस्वरूप तेलगू , कन्नड़ और मलयालम तीनों भाषाओं का साहित्य संस्कृत के तत्सम और तद्भव शब्दों से भर गया । 


इस प्रकार धीरे - धीरे संस्कृत भाषा ने भारत की समग्र प्रकृति पर अपना अधिकार जमा लिया ।


लौकिक क्षेत्र में आने से पूर्व संस्कृत का नाम देव वाणी था । व्याकरण ग्रन्थों की रचना के बाद शिक्षित समाज जिस भाषा का प्रयोग करता था वह संस्कृत थी , और अशिक्षित जन सामान्य की बोलचाल की भाषा ' प्राकृत ' कही जाने लगी । ब्राह्मण धर्म के अनुयायी समाज ने संस्कृत को अपनाया और महावीर , गौतम जैसे ब्राह्मण धर्म विरोधी , समाज सुधारकों ने प्राकृत की परंपरा को आगे बढ़ाया । किंतु आगे चलकर जैन बौद्ध सभी धर्मों के अनुयायियों ने सैद्धांतिक मत की स्थापना के लिए संस्कृत भाषा में ग्रंथ रचना करना प्रारंभ किया । इसी बीच में प्राकृत की एक विभाषा का जन्म हुआ , जिसका नाम । अपभ्रंश पड़ा ।


संस्कृत भाषा के दो रूप हमारे सामने प्रस्तुत हैं । ( 1 ) वैदिकी और ( 2 ) लौकिकी । इन दोनों में विषय ,भाषा ,छन्द ,अलङ्कार और स्वर की वजहा से अन्तर है | वैदिक भाषा में संहिता व ब्राह्मणों की रचना हुई है । लौकिक संस्कृत में बाल्मीकीय रामायण महाभारत आदि की रचना हुई है ।

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13 تعليقات

  1. App ne sanskrit k bare mi jo bhi likha h vo bhut h acche se likha h...hme app ki ye simple language bhut psnd aye..thnk u app ne hme sanskrit k bare mi itna btaya....hme app ka yr article bhut accha lga

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  2. सम्राट अशोक के काल मे संस्कृत नही थी।कोई अभिलेख संस्कृत मे नही मिला है।यह कहना कि संस्कृत पुरानी भाषा है गलत है।

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  3. Ye sabhi tathya sahi nhi hai
    Yadi sahi hai to his prakar kisi bhi tathya ko udghatit karte hai to usko tithi hori hai par sanskrit,bed,puran,Ramayana, mahabharata sabhi mithya hai

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  4. Sanskrit is language of aarya to spread (hiden false thoughts) in other parts several countries.
    It is neither as old as mentioned above .
    Pali prakrut is public talking language,
    Brahminism imposed Sanskrit .

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  5. संस्कृत मे एक भी शिलालेख नही मिले है, इससे क्या साबित होता है। संस्कृत की अपनी कोई लिपि भी नही है।

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  6. ईशा पूर्व इतने विदेशी आये लेकिन किसी कि भी किताबो मे संस्कृत भाषा का जिक्र तक नहीं हैं

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    1. अशोक सम्राट से पहले रामायण लिखी गई थी लौकिक संस्कृत में लिखा है

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  7. संस्कृत भाषा की लिपि कौन सी है?
    उत्तर भारत की लगभग सभी भाषाएं और लिपियां प्राचीन ब्राह्मी लिपि से प्रेरित हैं,और सभी का अपना एक भौगोलिक भाषाई क्षेत्र तथा प्रामाणिक ऐतिहासिक साक्ष्य भी रहा है। संस्कृत का अपना कोई भूगोल भी नही है।
    ऐसे में संस्कृत को अमर और प्राचीन कहना ग़लत है।

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  8. यह जानकारी योग्य हैं इस जानकारी को पढ़कर आपको इस कंटेंट से रिलेटेड कुछ मन में उठने वाले सवालों का जवाब जरूर मिल गया होगा। वैसे देखा जाए तो आजकल हर भाषा मैं समझने में सहूलियत होती है। जैसे कि "संस्कृत से हिन्दी ट्रांसलेशन" संस्कृत हिन्दी टू संस्कृत ट्रांसलेट कैसे करें आदि जानकारी आप पढ़ सकते हैं।

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  9. أزال المؤلف هذا التعليق.

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